A Simple Key For Hindi poetry Unveiled
A Simple Key For Hindi poetry Unveiled
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हमें अपना सर देकर भी उदय की जान बचानी है
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
आँखिमचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।९२।
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।४१।
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।५६।
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।३९।
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
हिम website श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।४२।
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